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किसानों को लेकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पर हाई लेवल मीटिंग, शाह-राजनाथ भी मौजूद

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किसान आंदोलन को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पर बड़ी बैठक चल रही है। इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मौजूद हैं। कृषि कानूनों को लेकर पिछले चार दिनों से किसान सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए हैं। वहीं, भारतीय किसान यूनियन ने भी अपना समर्थन दिया है।

इससे पहले कृषि मंत्री किसान आंदोलन के बीच केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार किसानों से बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन खत्म कर बातचीत करें। सरकार खुले मन से बातचीत करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों को 3 दिसंबर को बातचीत के लिए बुलाया है। किसान बातचीत माहौल बनाएं। कृषि मंत्री ने कहा कि कृषि सुधार कानूनों का एमएसपी से कोई लेना-देना नहीं है। एमएसपी पहले भी थी, आगे भी जारी रहेगी।

वहीं, किसानों ने नए कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमा पर डटे किसान संगठनों ने सरकार की बातचीत की अपील ठुकरा दी है और एक दिसंबर से सभी राज्यों में विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की है। विरोध कर रहे किसान संगठनों के संयुक्त मंच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने आज यहां जारी एक बयान में कहा कि सरकार को उच्च स्तर पर किसानों से बातचीत करनी चाहिए। समिति ने कहा कि किसानों ने एक दिसंबर से सभी राज्यों में भी विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है।

कल देर शाम केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों से बातचीत करने की अपील करते हुए कहा था कि तीन दिसंबर को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसान संगठनों के साथ बैठक करेंगे। बयान में कहा गया है कि किसान एकजुट हैं और एक सुर में केन्द्र सरकार से तीन किसान विरोधी, जनविरोधी कानूनों और तथा बिजली विधेयक 2020 की वापसी की मांग कर रहे हैं। किसान शांतिपूर्वक व संकल्पबद्ध रूप से दिल्ली पहुंचे हैं और अपनी मांग हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पंजाब और हरियाणा से भारी संख्या कुसान में सिंघु और टिकरी बाडर्र पर पहुंच रहे हैं।

उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के किसानों की गोलबंदी भी सिंघु बाडर्र पर हो रही है। किसानों का आरोप है कि सरकार ने उनकी मांगों और सवालों पर कोई ध्यान नहीं दिया है। सरकार की कार्यप्रणाली ने अविश्वास और भरोसे की कमी पैदा की है। किसान संगठनों का कहना है कि अगर सरकार किसानों की मांगों को सम्बोधित करने पर गम्भीर है तो उसे शर्तें लगानी बंद कर देनी चाहिए। 

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