ब्रेकिंग
दिल्ली सीमा पर डटे किसानों को हटाने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, CJI बोले- बात करके पूरा हो सकता है मकसद UP के अगले विधानसभा चुनाव में ओवैसी-केजरीवाल बिगाड़ सकते हैं विपक्ष का गणित सावधान! CM योगी का बदला मिजाज, अब कार से करेंगे किसी भी जिले का औचक निरीक्षण संसद का शीतकालीन सत्र नहीं चलाने पर भड़की प्रियंका गांधी पाक सेना ने राजौरी मे अग्रिम चौकियों पर गोलीबारी की संत बाबा राम सिंह की मौत पर कमलनाथ बोले- पता नहीं मोदी सरकार नींद से कब जागेगी गृह मंत्री के विरोध में उतरे पूर्व सांसद कंकर मुंजारे गिरफ्तार, फर्जी नक्सली मुठभेड़ को लेकर तनाव मोबाइल लूटने आए बदमाश को मेडिकल की छात्रा ने बड़ी बहादुरी से पकड़ा कांग्रेस बोलीं- जुबान पर आ ही गया सच, कमलनाथ सरकार गिराने में देश के PM का ही हाथ EC का कमलनाथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश, चुनाव में पैसे के गलत इस्तेमाल का आरोप

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकार नागरिक संपत्ति हमेशा अपने कब्जे में नहीं रख सकती, जानें क्‍या है पूरा मामला

[responsivevoice_button voice="Hindi Female" buttontext="खबर सुनें "]

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारें अनिश्चितकाल तक नागरिकों की संपत्तियों को जब्त करके अपने कब्जे में नहीं रख सकती हैं। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसी कोई भी घटना या ऐसा करने की अनुमति देना किसी भी तरह से किसी गैरकानूनी कृत्य से कम नहीं है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और एस रवींद्र भट की खंडपीठ ने मंगलवार को केंद्र सरकार को बेंगलुरु के बायपन्नहल्ली स्थित चार एकड़ जमीन को तीन महीने के अंदर उसके कानूनी मालिक बीएम कृष्णमूर्ति के किसी वारिस को लौटाने का आदेश देते हुए यह फैसला सुनाया है।

यह जमीन करीब 57 सालों से केंद्र सरकार के कब्जे में थी। खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि वैसे तो संपत्ति का अधिकार संविधान में मौलिक अधिकार नहीं बताया गया है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों को अनिश्चितकाल तक नागरिकों की संपत्ति को अपने कब्जे में रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार पर 75 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया जो उसे कृष्णमूर्ति के कानूनी वारिसों को चुकाना पड़ेगा।

इस फैसले के संबंध में जस्टिस भट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार एक बेशकीमती अधिकार है जिसमें आर्थिक स्वतंत्रता की गारंटी हासिल होती है। अदालत ने अपने फैसले में जमीन के लंबे इतिहास का जिक्र करते हुए इस बात का संज्ञान लिया कि केंद्र सरकार ने इस जमीन को 1963 में हासिल किया था। वीके रविचंद्रा और अन्य की ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट में दायर याचिका के जरिये केंद्र के जमीन को खाली छोड़ने की इजाजत मांगी गई थी

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.