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दिवाली बीतने के बाद भी निवेशकों की रह सकती है चांदी, शेयर बाजार में किन वजहों से बनी रह सकती है तेजी, बता रहे हैं एक्सपर्ट

नई दिल्ली। आज यह लिखते हुए काफी खुशी हो रही है कि निफ्टी ने ना सिर्फ हमारे 12,400 अंक के टार्गेट को छू लिया बल्कि 12,800 अंक के नए स्तर पर पहुंच गया। पिछले 7.5 माह में निफ्टी ने 7,500 अंक के स्तर से 12,800 के स्तर तक का सफर तय किया है और हमारे फॉलोअर्स ने इसका जमकर फायदा उठाया है। हमने इस तरह 100 फीसद का स्ट्राइक रेट हासिल किया। शेयर बाजार में जमकर गोता लगाने की हमारी रणनीति ने काम किया है। आगे बढ़ने से पहले हम अपने सभी फॉलोअर्स को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करना चाहते हैं क्योंकि निवेशकों के लिए इससे बेहतर दिवाली नहीं हो सकती।

हम अमेरिकी चुनावों और बाजारों पर उसके असर को लेकर बिल्कुल सही थे। हमने कहा था कि ट्रंप की जीत हो या हार, बाजार में तेजी आएगी। आपको एक बार फिर से याद दिलाते चलें कि QE से जुड़े असर और लिक्विडिटी की वजह से अमेरिकी और भारतीय बाजारों को मजबूती मिली। हमने निफ्टी के पीई अनुपात का विश्लेषण किया था। साथ ही नए नियमों के असर की भी बात की थी। हमारा मानना है कि 80 फीसद निवेशकों ने गलत समय पर बाजार से एग्जिट किया या आत्म विश्वास की कमी के कारण बाजार में तेजी का फायदा पूरी तरह नहीं उठा पाए। खैर, जो बात बीत गई, उस पर ज्यादा चर्चा करने का कोई मतलब नहीं हैं। हमारा ध्यान अब इस बात पर रहेगा कि आगे क्या?

वारेन बफे ने निवेश के लिए केवल एक मॉडल को माना है, वह मॉडल है बाजार पूंजीकरण से जीडीपी। अब तक हमने इस पहलू को नहीं छुआ है क्योंकि हमारा मानना है कि Nifty के 12,400 पर पहुंचने तक इसकी जरूरत नहीं थी। हमने कई मौकों पर बाजार के 2021 में 14,000 अंक के स्तर तक पहुंचने का टार्गेट दिया है। ग्लोबल फंड Goldman Sach ने भी यही टार्गेट दिया है, जिससे हम ताज्जुब में हैं। इस फंड द्वारा कही गई बात का इतिहास अच्छा नहीं रहा है। जब भी वे बाजार में गिरावट की बात करते हैं तो बाजार में तेजी देखने को मिलती है।

दूसरी ओर जब वे तेजी की बात करते हैं तो कई बार गिरावट देखने को मिलता है। ऐसे में आने वाले समय में बाजार में गिरावट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में अब हम भारत के संदर्भ में वॉरेन बफे मॉडल को लागू करने की कोशिश करते हैं। भारत में दीर्घकालिक बाजार पूंजीकरण और जीडीपी का अनुपात 75 फीसद पर है। यह दस साल का औसत है। इस साल मार्च में जब यह 56 फीसद पर रहा गया था तो यह स्पष्ट था कि बाजार में तेजी आएगी क्योंकि पिछले दो दशक में ऐसा महज दो मौकों पर हुआ था। 2020 से पहले ऐसा 2007 में हुआ था। इस साल कोरोनावायरस से जुड़ी अनिश्चितताओं और जीडीपी में 22 फीसद के संकुचन की वजह से ऐसा हुआ।

वर्तमान में बाजार पूंजीकरण और जीडीपी का अनुपात 98 फीसद पर है। यह कोई आगाह करने वाली स्थिति नहीं है लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक दशक के औसत से ऊपर निकल गया है, ऐसे में बाजार बहुत महंगा हो गया है।

अमेरिका में बाजार पूंजीकरण और जीडीपी का अनुपात 190 फीसद का है, इसके बावजूद Dow में किसी तरह की सुस्ती का संकेत नही है। ऐसे में हमारा मानना है कि भारत इस समय बहुत सहज स्थिति में है। दूसरी बात यह है कि Nifty भले ही 7,500 अंक से 12,800 अंक के स्तर पर पहुंच गया है लेकिन जीडीपी डेटा में अभी रिकवरी दिखना बाकी है। ऐसे में 98 फीसद का ऊंचा आंकड़ा सही नहीं है। हमारा अनुमान है कि 2020-21 में जीडीपी में चार फीसद का संकुचन देखने को मिल सकता है। वहीं, 2021-22 में जीडीपी में 10 फीसद की बढ़त देखने को मिल सकती है। अगर आप एक साल आगे के जीडीपी को ध्यान में रखते हैं तो यह कह सकते हैं कि हमारे बाजार पूंजीकरण और जीडीपी का अनुपात 75 फीसद से काफी नीचे हैं और हमारा बाजार महंगा नहीं है। भारत में इस अनुपात के 120 फीसद के ऊपर जाने के बाद ही करेक्शन देखने को मिला है।

यहां एक और चीज पर गौर किए जाने की जरूरत है कि भारत दुनिया के शीर्ष पांच बाजारों में शामिल है और इस मानक पर चीजों की तुलना किए जाने की जरूरत है। अगर अमेरिका बाजार पूंजीकरण और जीडीपी के 190 फीसद से अनुपात को स्वीकार कर सकता है तो भारत के लिए केवल 75 फीसद का दीर्घकालिक औसत क्यों? पिछले दशक और अभी के भारत में अंतर है। इसलिए इस पहलू पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

अमेरिकी फेड रिजर्व चुनावों के ठीक बाद 2.5 ट्रिलियन डॉलर रिलीज करने पर सहमत हुआ है। यह बहुत बड़ी रकम है। इससे पहले अमेरिकी फेड ने कल दो ट्रिलियन डॉलर को लेकर बात की थी। अब आपको वैश्विक लिक्विडिटी की ताकत को समझने की जरूरत है। वे किसी भी तरह अमेरिका को मंदी में नहीं जाने देंगे। कुल मिलाकर 13 ट्रिलियन डॉलर खर्च होंगे। ऐसे में लिक्विडिटी को लेकर बहुत अधिक उम्मीद है। इससे बाजार और ऊपर जाएंगे। वास्तव में Nifty का प्रदर्शन Dow से कमतर था लेकिन निफ्टी में अचानक Dow से ज्यादा तेजी देखने को मिली है। अब आइए इन बातों को भी समझते हैं, जो बाजार को प्रभावित कर सकते हैं।

कंपनियों के दूसरे तिमाही के परिणाम से शेयर बाजारों को बहुत अधिक बल मिला है। जमीनी हकीकत यह है कि डिमांड बहुत अधिक है और कई चीजों की शॉर्टेज देखने को मिल रही है। क्या इससे मांग में तेजी आ सकती है। अच्छे मॉनसून, बड़े सुधार, जीएसटी कलेक्शन में जबरदस्त रिकवरी, जनवरी 2021 से मिड कैप और स्मॉल कैप के लिए सेबी के नये नियमनों से आने वाले समय में और अधिक तेजी की गुंजाइश बनी हुई है।

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