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मुजफ्फरपुर की बोचहां विधायक ने सिंबल वापसी का बदला सिंबल वापस कर लिया या यह उनका हृदय परिवर्तन था?

मुजफ्फरपुर। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 (Bihar Assembly Elections)के दौरान मुजफ्फपुर () चुनाव से पहले ही शीर्ष स्तर के राजनीतिक घटनाक्रम का गवाह बना हुआ है। पिछले एक सप्ताह के दौरान हर बदलते दिन के साथ राजनीति का बिल्कुल नया रूप ही सामने होता था। हालांकि अब बहुचर्चित बोचहां (Bochhan) विधायक बेबी कुमारी (Baby Kumari) प्रकरण का पटाक्षेप हो गया लगता है। बावजूद, जनता के मन में एक अनुत्तरित सा सवाल है कि लोजपा (LJP) को सिंबल वापस करना हृदय परिवर्तन था या फिर सिंबल वापसी का बदला सिंबल वापस कर लिया गया।

जब इस मुद्​दे पर खुद बेबी कुमारी, भाजपा (BJP) व लोजपा के नेताओं से बात करने की कोशिश की गई तो किसी ने भी आधिकारिक रूप से कुछ भी कहने से साफ तौर पर इंकार कर दिया। एक-दो मुंह खोलने के लिए तैयार भी हुए तो उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त रख दी। खैर, सबने एक कॉमन बात कही। वह यह कि वर्ष 2015 में लोजपा ने जिस तरह से बेबी कुमारी से सिंबल वापस लिया था, वह असहज करने वाली स्थिति थी। यही वजह थी कि उसका परिणाम भी उस चुनाव में अप्रत्याशित ही देखने को मिला। लेकिन, इसका यह कतई अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि बेबी कुमारी ने इस बार लोजपा को जो सिंबल वापस किया, उसमें कहीं से भी बदला लेने की बात थी। इसे एक सहज राजनीतिक प्रक्रिया कहना ही बेहतर होगा।

प्रेक्षकों का मानना है कि यदि इस घटना को एक संदर्भ के रूप में देखा जाए तो चीजें साफ हो जाएंगी। तमाम प्रयास के बाद भी जब बेबी का टिकट कट जाता है तो वह भावावेश में आ जाती हैं। जो सहज भी है। इसके बाद प्रेस कांफ्रेंस कर कई तरह के आरोप लगाती हैं और वहीं वैशाली सांसद वीणा देवी (Veena Devi) उन्हें लोजपा से सिंबल दिलाने की बात कह देती हैं। इसके बाद उन्हें सिंबल मिल भी जाता है।

सूत्रों का कहना है कि इस समय तक घटनाक्रम जो बाहर दिख रहा था, वैसा ही अंदर भी था। लेकिन, असली कहानी इसके बाद शुरू हुई। बेबी कुमारी के वीआइपी (VIP) पर आक्रामक रुख को देखते हुए यहां भाजपा नेताओं का हस्तक्षेप शुरू होता है। क्योंकि बेबी कुमारी प्रकरण से एक मैसेज यह भी जा रहा था कि भाजपा अपने कार्यकर्ता को बैकअप नहीं देती है। ख्याल नहीं रखती। जब भाजपा नेताओं ने डैमेज कंट्रोल शुरू किया तो बेबी कुमारी को बोचहां का पूरा गणित बताया गया। खासकर, मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) पर आक्रामक होने के बाद वहां के निषाद समाज की प्रतिक्रिया को समझाया गया। वर्ष 2015 और आज की स्थिति के अंतर को बताया गया। इसके साथ ही सरकार बनने की स्थिति में समायोजित करने का आश्वासन भी दिया गया। इसके बाद सिंबल वापस करने और पार्टी में ही बने रहने का उन्होंने फैसला किया।

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