ब्रेकिंग
दिल्ली सीमा पर डटे किसानों को हटाने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, CJI बोले- बात करके पूरा हो सकता है मकसद UP के अगले विधानसभा चुनाव में ओवैसी-केजरीवाल बिगाड़ सकते हैं विपक्ष का गणित सावधान! CM योगी का बदला मिजाज, अब कार से करेंगे किसी भी जिले का औचक निरीक्षण संसद का शीतकालीन सत्र नहीं चलाने पर भड़की प्रियंका गांधी पाक सेना ने राजौरी मे अग्रिम चौकियों पर गोलीबारी की संत बाबा राम सिंह की मौत पर कमलनाथ बोले- पता नहीं मोदी सरकार नींद से कब जागेगी गृह मंत्री के विरोध में उतरे पूर्व सांसद कंकर मुंजारे गिरफ्तार, फर्जी नक्सली मुठभेड़ को लेकर तनाव मोबाइल लूटने आए बदमाश को मेडिकल की छात्रा ने बड़ी बहादुरी से पकड़ा कांग्रेस बोलीं- जुबान पर आ ही गया सच, कमलनाथ सरकार गिराने में देश के PM का ही हाथ EC का कमलनाथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश, चुनाव में पैसे के गलत इस्तेमाल का आरोप

Bihar Assembly Election: चेहरे की बिसात से बिहार में उलटती-पलटती रही है चुनावी बाजी

नई दिल्ली। बिहार के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करने की लोजपा को दी गई भाजपा की चेतावनी ने सूबे में एक बार फिर चुनाव में चेहरे की सियासत की अहमियत का पुख्ता संदेश दे दिया है। चेहरे की अहमियत का ही तकाजा है कि नीतीश कुमार के नेतृव में चुनावी मैदान में उतरने के एलान के बावजूद भाजपा को केंद्र में अपने सहयोगी दल लोजपा को पीएम मोदी के चेहरे से दूरी बनाने की हिदायत देनी पड़ रही है।

सूबे के चुनाव में चेहरों को लेकर राजनीतिक पार्टियों की इस अति सतर्कता की वजह बिहार के बीते तीन दशक के चुनावी नतीजे हैं। हालिया सियासी इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो 1990 से अब तक सात विधानसभा चुनावों में सत्ता की दशा-दिशा मैदान में उतरे चेहरों ने तय की है। चुनावी मुद्दे चाहे जितने प्रासंगिक हों चेहरे ही सत्ता की चाभी साबित हुए हैं। 1990 से 2005 तक के 15 सालों के कालखंड में सामाजिक न्याय के नारे के जरिये लालू सूबे में पिछड़े वर्ग के राजनीतिक सशक्तिकरण के सबसे बड़े चेहरे रहे।

हालांकि, राजनीतिक सशक्‍तीकरण की यह आंच जब धीमी हुई और सूबे के पिछड़ेपन व विकास के मुद्दों की आवाज तेज हुई तब लालू के सियासी चेहरे की रौनक भी कमजोर पड़ी। सूबे में डेढ़ दशक तक सामाजिक न्याय के निíववाद चेहरा रहे लालू के इस कालखंड को आखिरकार 2005 में विकास और सुशासन का चेहरा लेकर सामने आए नीतीश कुमार ने समाप्त किया। नीतीश ने एक ओर विकास-सुशासन और सामाजिक न्याय के प्रगतिशील चेहरे के साथ हर वर्ग को जोड़ा और 15 साल की लंबी पारी खेल दी है।

समय के घूमते चक्र का नतीजा कहें या संयोग मगर 2020 के चुनाव में बिहार में चेहरे की यह लड़ाई एक नए मोड़ पर है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे ने केंद्रीय राजनीति की सीमा को तोड़ते हुए प्रदेश की राजनीति में झंडा गाड़ दिया। इसका असर कितना है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बिहार में राजग से अलग होने के बावजूद लोजपा मोदी के नाम पर मैदान में है तो राजग की ओर से चेतावनी दी जा रही है।

अगले विधानसभा चुनाव तक खुद को स्थापित करने में जुटे लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान बार-बार मोदी को अपना हीरो बताकर जनता में यह स्थापित करना चाहते हैं कि लोजपा को दिया गया वोट दरअसल, मोदी के लिए होगा। दिलचस्प यह है कि तीन दशक बाद सूबे में विकल्प के नए चेहरे के तौर पर पहली बार मैदान में उतरे लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव को सूबे ने नेतृव की कसौटी पर अभी तक परखा नहीं है।

हालांकि यह भी अहम है कि तेजस्वी युवा चेहरा हैं और सूबे के मतदाताओं में युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। चुनावी चेहरे की जरूरत का ही तकाजा है कि महागठबंधन की दूसरी बड़ी साझेदार कांग्रेस ने चुनाव से पहले तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने पर हामी भर दी।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.