हेमंत निगम छोटी से घटना से बन गए ‘खिलौने वाले अंकल’, 10 हजार मासूमों के चेहरे पर लाए मुस्कान
भोपाल। गरीबों और जरूरतमंदों को पैसा व खाना देने के लिए तो फिर भी लोग सामने आ जाते हैं, लेकिन शायद ही कोई हो जो उन मासूमों के चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए सोचता हो, जिन्होंने हमेशा सपनों को शोरूम के शीशों के पीछे देखा हो। ऐसे ही करीब 10 हजार मासूमों को खिलौने देकर उनके चेहरों पर मुस्कान लाने वाले हेमंत निगम बन गए हैं उनके ‘खिलौने वाले अंकल।’मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रहने वाले हेमंत निगम इलेक्टॉनिक्स कारोबारी व समाज सेवी हैं। वह और उनकी संस्था ‘टॉयज फॉर टोट्स’ ने तीन साल में यह साबित कर दिखाया है कि अगर चाह लिया जाए तो किसी के भी चेहरे पर मुस्कान लाई जा सकती है।
हेमंत को छोटी से घटना ने किया प्रेरित
एक छोटी सी घटना ने हेमंत को इस तरह प्रेरित किया कि उन्होंने संकल्प ले लिया कि उनके रहते कोई गरीब मासूम खिलौने के बिना नहीं रहेगा। उनकी संस्था बिना किसी से कोई आíथक मदद लिए एक हजार से ज्यादा गरीब बस्तियों में जाकर खिलौने बांट चुकी है। इतनी बड़ी संख्या में खिलौने बांटने पर साल 2019 में यह संस्था ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड’ में अपना नाम दर्ज करवा चुकी है। इसके बाद स्थानीय प्रशासन की नजर भी इन पर पड़ी और उनकी संस्था को बढ़ावा दिया गया। इस घटना ने किया प्रेरित : दरअसल, तीन साल पहले हेमंत एक दिन कार से माधव नगर के पास से गुजर रहे थे। वहां वह किसी काम के लिए रुके तो अचानक उनकी नजर एक टॉयज शोरूम पर पड़ी। उसमें एक से एक बेहतरीन खिलौने सजे थे।
शोरूम के बाहर दो मासूम बच्चे बैठे थे। उनके शरीर पर पूरे कपड़े तक नहीं थे, लेकिन वे बाहर से उस शोरूम में रखी एक गुड़िया को निहार रहे थे।बच्चे आदिवासी परिवार से थे। पास ही में उनके माता-पिता मजदूरी कर रहे थे। उनके लिए खिलौने सिर्फ और सिर्फ सपना ही थे। हेमंत उनके पास पहुंचे। बच्चों को खाने के लिए कुछ दिया,लेकिन उन्होंने नहीं लिया। फिर हेमंत को समझ आया कि खाना और पैसे तो बहुत लोग देते होंगे, लेकिन बच्चों की मासूमियत को खिलौनों की ज्यादा जरूरत थी। वह दृश्य हेमंत नहीं भूले और उन्होंने खिलौने बांटने का फैसला कर लिया।
छोटी से घटना के बनाई ‘टॉयज फॉर टोट्स संस्था
हेमंत ने कुछ समय बाद ही दोस्तों के साथ मिलकर ‘टॉयज फॉर टोट्स’ संस्था बना दी।सेंट्रल जेल में चला रहे स्कूल : संस्था के सदस्य गरीब बस्तियों में खिलौने बांटने के बाद 2018 में जेल में रहने वाले बच्चों को खिलौने बांट रहे थे। उसी दौरान तत्कालीन कलेक्टर राहुल जैन भी वहां पहुंचे। पेड़ के नीचे बंदी महिलाओं के बच्चों को पढ़ता देखा तो उन्होंने हेमंत को जेल में स्कूल शुरू करने का सुझाव दिया। जेल अधीक्षक के साथ प्रयास कर संस्था ने वहां स्कूल तैयार कराया, जिसका नाम ‘बाल शिक्षा केंद्र’ रखा गया है।
जनवरी, 2020 में जेल में स्कूल शुरू हो गया। यहां 21 बच्चे हैं, जिनमें से स्कूल में पढ़ने लायक 10 बच्चे हैं। इनको पढ़ाने के लिए दो शिक्षक हैं। इसका इंतजाम जिला प्रशासन के सहयोग से शिक्षा विभाग और महिला बाल विकास विभाग ने किया है। पूरा खर्च संस्था उठाती है। बच्चों को महिला बाल विकास विभाग से प्रमाण पत्र मिलता है।दादा से सीखा सेवाभाव : मूलत: उत्तर प्रदेश के झांसी के रहने वाले हेमंत ग्वालियर के सिटी सेंटर स्थित गंगाविहार में रहते हैं। हेमंत के परिवार में मां प्रेम देवी, पत्नी जया, बेटी वíणका व बेटा वíणक हैं। हेमंत बताते हैं कि उनके दादाजी स्व. कालीचरण निगम स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हीं से समाजसेवा के काम का जज्बा मिला। जया ने भी हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया। हमेशा उन्हें समाजसेवा के लिए प्रेरित किया।
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