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भारत के सामने आने वाली है सबसे बड़ी चुनौती, सफल हुए तो बदल जाएगी दुनिया की सोच

नई दिल्‍ली। कोविड-19 महामारी के संदर्भ में सबसे बड़ी चुनौती अब आने वाली है। भारत जैसे विशाल देश में हर व्यक्ति तक टीका पहुंचाना और उन्हें इसे लगाने के लिए तैयार करना सबसे बड़ी मुश्किल साबित हो सकती है। देश के 70 करोड़ लोगों को 12 महीनों में सुरक्षित करना बड़ी चुनौती है। अगर हम इसमें सफल रहते हैं तो दुनिया की इस धारणा को तोड़ने में मदद मिलेगी कि भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रदर्शन खराब है। देश की छवि बेहतर होगी, जिसका सकारात्मक असर निवेश पर होगा।

हर्ड इम्युनिटी की दरकार

प्रत्येक व्यक्ति को वैक्सीन उपलब्ध कराने की बात करना स्वाभाविक है, लेकिन सभी 1.3 अरब लोगों को वैक्सीन उपलब्ध कराने की आवश्यकता नहीं है। महामारी को रोकने के लिए 70 फीसद लोगों को सुरक्षित कर हर्ड इम्युनिटी को हासिल किया जा सकता है। यह करीब 90 करोड़ है, लेकिन गर्भवती महिलाओं और 10 साल से कम उम्र के बच्चों को अलग रखा जाना चाहिए। इसकाकारण है कि किसी भी वैक्सीन का अभी तक इन समूहों में परीक्षण नहीं किया गया है।

भारी-भरकम खुराक

ऑपरेशनल टारगेट 70 करोड़ से कम है और साल भर में इसे हासिल करने के लिए दो खुराक प्रति व्यक्ति के हिसाब से साल भर में 1.4 अरब खुराक की जरूरत होगी। साल भर में 1.4 अरब खुराक हासिल करना चुनौती है, हालांकि अन्य विकासशील देशों की तुलना में हमारी स्थिति बेहतरहै। इसका कारण है हमारी बड़ी वैक्सीन उत्पादन क्षमता। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता है। यह ऑक्सफोर्डए स्ट्राजेनेका वैक्सीन का उत्पादन कर रही है और नोवावैक्स वैक्सीन का उत्पादन भी करेगी। प्रति वर्ष 1.2 अरब खुराक की क्षमता का विस्तार कर रहा है और इसका आधा हिस्सा भारत के लिए उपलब्ध हो सकता है। अन्य भारतीय वैक्सीन निर्माता हैंजाइडस कैडिला, भारत बायोटेक, डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज और बायोलॉजिकल ई।

चयन की चुनौती

टीकाकरण कार्यक्रम में वैक्सीन का चुनाव साधारण मामला नहीं है। वैक्सीन बहुत अलग तकनीकों पर आधारित हैं- मैसेंजर आरएनए, एडेनोवायरस और निष्क्रिय वायरस के प्रयोग वाला परंपरागत दृष्टिकोण। प्रत्येक वैक्सीन सह-रुग्णता की उपस्थिति के आधार पर विभिन्न आयु समूह पर प्रभाव, साइड इफेक्ट्स और एक दूसरे से प्रभावशीलता में भिन्न होगी। एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार भारत उन तीन देशों में शुमार हैं, जिसने एक अरब से ज्यादा खुराक हासिल करना पक्का कर चुका है।

वित्त पोषण बड़ा मसला

टीकाकरण कार्यक्रम का वित्तीय पोषण विवादास्पद मुद्दा है। यदि सरकार खर्च वहन करती है तो राज्यों की खराब आर्थिक स्थिति देखते हुए केंद्र सरकार राज्यों के लिए विशेष अनुदान पर विचार कर सकती है। इसका तात्पर्य यह है कि केंद्र को 2021-22 के बजट में टीकाकरण कार्यक्रम के लिए अतिरिक्त 35,000 करोड़ रुपये देने होंगे।

डाटा न होने के कारण मुश्किल

अलग-अलग प्राथमिकता वाले समूहों में आने वाले व्यक्तियों की वास्तविक पहचान राज्य सरकारों को करनी होगी। डाटाबेस न होने से सह रुग्णता वाले लोगों को पहचानना मुश्किल काम होगा। राज्यों को स्वयं घोषणा करने वाले व्यक्तियों पर निर्भर रहना होगा।

पोलियो से कठिन है यह टीकाकरण

पोलियो की खुराक मुंह मेंदेने के विपरीत कोरोना में इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। इंजेक्शन आमतौर पर नर्सों द्वारा दिए जाते हैं, लेकिन उनकी संख्या कम है। अच्छी बात यह है कि एक शिक्षित व्यक्ति को इंजेक्शन देने के लिए अपेक्षाकृत जल्दी प्रशिक्षित किया जा सकता है। राज्यों को मार्च के मध्य तक उपलब्ध समय का उपयोग करना चाहिए, जब कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए पहले टीकाकरण के शुरू होने कीउम्मीद है। निजी क्षेत्र की दवा कंपनियों और अस्पतालों को प्रशिक्षण में मदद करने के लिए इस्तेमाल किया जासकता है।

क्रियान्वयन में लचीलापन जरूरी

पूर्व में केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं के साथ बड़ी समस्या यह है कि वे केंद्र द्वारा निर्धारित कठोर दिशा निर्देशों से पीड़ित रही हैं। अनुभव बताता है कि राज्य सरकारों को क्रियान्वयन में अधिकतम लचीलापन दिया जाना चाहिए।

निजी क्षेत्र की भूमिका

निशुल्क वैक्सीन सरकारी अस्पतालों के जरिये वितरित करने का विचार उन देशों के लिए ठीक है, जहां बेहतर राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा है। भारत में स्थिति बहुत अलग है। शहरी क्षेत्रों में लोग निजी चिकित्सकों पर भरोसा करते हैं। फार्मासिस्ट और टेस्टिंग लैब जैसी निजी संस्थाओं को टीकाकरण के लिए राज्य सरकार के अधिकृत एजेंटों के रूप में नामांकित किया जा सकता है। सरकारी अस्पतालों में जाने के इच्छुक लोग पूरी तरह से फ्री में प्राप्त कर सकते हैं। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों में भीड़ से बचने में मदद मिलेगी जो आसानी से सुपर-स्प्रेडर घटनाओं में बदल सकते हैं। निजी अस्पतालों और क्लीनिकों को भी बाजार से अनुमोदित वैक्सीन खरीदने और आम जनता कोशुल्क के साथ लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए। निजी कंपनियां स्वयं के खर्च पर कर्मचारियों का टीकाकरण करने के लिए तैयार हो सकती हैं। कम से कम पहले दो वर्षों के लिए निजी क्षेत्र को आर्पूित की गई वैक्सीन पर मूल्य नियंत्रण से बचना महत्वपूर्ण होगा।

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