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बढ़ाना होगा ग्रेप का दायरा, बरतनी होगी सख्ती, पड़ोसी राज्य पराली जलाकर दूषित करते हैं हवा

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नई दिल्ली। दिल्ली की हवा को साफ और स्वच्छ बनाने के लिए दिल्ली सरकार से लेकर प्रदूषण नियंत्रण विभाग द्वारा उठाए जा रहे कई सार्थक कदमों के बावजूद हवा की गुणवत्ता में कोई खास सुधार नहीं हो पा रहा है। प्रति वर्ष डीजल चालित वाहनों पर प्रतिबंध से लेकर सड़कों से वाहनों का बोझ कम करने के लिए आड-इवन लागू करने की बात हो या निर्माण कार्यो पर रोक वायु के स्तर में सुधार की कोई गुंजाइश ही नजर नहीं आ रही है।

दरअसल राजधानी में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पड़ोसी राज्यों में पराली जलाया जाना है। दिल्ली में 40 फीसद वायु प्रदूषण पड़ोसी राज्यों से आता है। पड़ोसी राज्यों में जब पराली जलाई जाती है तो दिल्ली की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है। साफ है कि राजधानी में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने पर सख्ती से रोक लगानी ही होगी।

यह प्रयास किया जाना चाहिए कि इन राज्यों के किसान पराली जलाने के बजाय उससे कुछ उपयोगी चीजें जैसे पशुओं के लिए चारा या जैविक खाद आदि बनाएं। इस तरह से पराली का इस्तेमाल भी हो जाएगा और दिल्ली को वायु प्रदूषण से काफी हद तक राहत भी मिल जाएगी। वायु प्रदूषण पर हाल ही में लाए गए अध्यादेश में कई अच्छे प्रावधान किए गए हैं।

उम्मीद है कि इससे राजधानी के साथ ही पड़ोसी राज्यों के वायु गुणवत्ता सूचकांक में भी सुधार होगा।

ग्रेप की बड़ी खामी यही है कि यह सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में ही लागू होता है। नए अध्यादेश में एक आयोग बनाया गया है। दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब व राजस्थान इस आयोग के सदस्य राज्य हैं। अब वायु प्रदूषण से निपटने के लिए ये राज्य एक-दूसरे के साथ मिलकर कोई भी ठोस कदम उठा सकेंगे। इसमें पांचों राज्यों की सहभागिता व सहमति से काम होगा। दरअसल, दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक सिर्फ दिल्ली के प्रयासों से ही नहीं, बल्कि सभी पड़ोसी राज्यों के सहयोग से ही सुधारा जा सकता है।

इसलिए जरूरी है कि पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान व पंजाब में भी प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगाई जाए। जहां-जहां से हवा आती है और जहां-जहां इस हवा का असर होता है, उस पूरे क्षेत्र को एयर बेसिन कहते हैं। नए अध्यादेश में पूरा एयर बेसिन यानी दिल्ली-एनसीआर के शहरों के साथ ही पांचों राज्य इसके दायरे में आ गए हैं। जबकि ग्रेप में ऐसा नहीं है।

अब पूरे क्षेत्रीय स्तर पर वायु गुणवत्ता की योजना तैयार हो सकेगी। इन पांचों में से किसी भी राज्य में उठाए गए कदम का दिल्ली या अन्य राज्य की वायु गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ा या भविष्य में क्या प्रभाव पड़ सकता है, इसकी सघन जांच बहुत जरूरी है। नए आयोग में निरीक्षण पर ज्यादा जोर दिया गया गया है।

एयर क्वालिटी डिस्टिक्ट होगा कारगर :

वायु प्रदूषण से निजात पाने के लिए टेरी में भी हम लोगों ने कई शोध व अध्ययन किए हैं। एनसीआर में एक एयर क्वालिटी डिस्टिक्ट बन जाए जो कि इस अध्यादेश ने एक तरह से बना दिया है। यह ग्रेप के विस्तृत रूप जैसा है, जो एनसीआर के साथ ही दिल्ली के अप¨वड राज्यों (जिन राज्यों से दिल्ली में हवा आती-जाती है) में भी लागू होगा। दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए बड़े स्तर पर काम करने की जरूरत है।

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